• बारिशों का शहर | कवि, कविता और वो | यात्रा सीरीज - 5

  • Jul 5 2024
  • Length: 7 mins
  • Podcast

बारिशों का शहर | कवि, कविता और वो | यात्रा सीरीज - 5

  • Summary

  • जब आप किसी शहर में रोज़-दो रोज़ के लिए रुकते हैं- तो आप उस शहर से किसी पहले प्रेम में पड़े स्कूली बच्चे की तरह प्यार करते हैं। आप हड़बड़ी में शहर के खूबसूरत हिस्से घूम कर उसे समझ लेना चाहते हैं। कलेजा एक नए रोमांस से गर्म हो उठता है। आप बेवकूफों से खिलखिलाते हैं। दुनिया की सबसे नर्म हथेलियां नए शहर की होती हैं, जिसे पकड़ आप देर रात तक वही रुक जाने के झूठे वादे उस शहर से कर आते हैं। हमारी खुद की टूटी जिंदगी में उम्मीद बनकर आता है नया शहर, वो जहां हर चीज़ खूबसूरत है। जहां जीवन नीरस नहीं हुआ। जहां कितना कुछ बचा हुआ है ढूंढे जाने को। उसके तारीफों के पुल बांध कर हम उस शहर से गुज़र जाते हैं। पर दो दिन के यात्रियों के उस पुल के नीचे बहती रहती है रोज़मर्रा की जिंदगी का सच। वहाँ रहने वाला व्यक्ति भी अपने शहर से प्यार करता है। पर उस प्रेम में एक ठहराव होता है।उसे पता है कि जीवन के सत्य ने शहर की हथेलियों को नरम नहीं छोड़ा। पर ठंड में शहर के खुरदुरे और चोट लगे हाथों को चूमता है, और उसे खूबसूरत कर देता है।वो अपने जीवन में इतना व्यस्त होता है कि यात्री की तरह कोई वादा नहीं कर पाता- पर शहर को पता है कि वो उसे छोड़ नहीं जाएगा। वो निवासी है, यात्री नहीं।। एक यात्री के प्रेयस की निगाहों में बैठ जाती है उसके पैरों की थकान। नज़रें जो यात्री के साथ दूर तलक गईं, और उसे अकेला न होने दिया। ऐसी आंखों में थकान लाज़मी है। यात्री दुनिया के किसी भी कोने जा सकता है पर अपनी प्रेयस की आँखों से दूर नहीं जा सकता। दुनिया की ऐसी कोई सड़क नहीं है जिसने किसी न किसी की राह नहीं देखी हो। इसलिए हर रस्ता पैरों को बढ़ने के जगह भले न दे पर वो आँखों के प्रति दयालु रहता है। कभी सड़क निगाह हो जाती है, कभी निगाहों से सड़क गुज़रती है। मेरी आँखों ने हर क्षितिज देखा है क्योंकि वो व्यक्ति मुझसे निरंतर दूर जाता जा रहा है। मेरी निगाहों ने सब देखा है, एक घर छोड़ दुनिया का हर कोना देखा है।धरती की गोलाई पर अपने प्रेयस का पीछा करती आंखें गोल हो जाती हैं। फिर एक रोज़ इनमें बस जाती है एक अलग दुनिया, जहाँ प्रेयस अकेला यात्री होता है। फिर एक रोज़ यात्री समझ नहीं पाता कि जिस दुनिया में वो घूम रहा है वो धरती है कि उसके प्रेयस की आंखें। यात्राएँ कहीं भी शुरू हो सकती हैं, पर उन्हें खत्म आँखों में ही होना ...
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