• दीवार की तरफ़

  • Aug 28 2024
  • Length: 3 mins
  • Podcast

दीवार की तरफ़

  • Summary

  • मैं इंतज़ार में था एक सुन्दर सुबह के, जब लगभग सब कुछ सुन्दर ही दिखाई दे। ऐसी सुबह कई बार आती-आती रह गई। फिर धीरे-धीरे मैंने उसकी चाहना ही छोड़ दी। मैं डूब गया कुहरे से सनी सुबहों में, धूसर दिनों में और रातों की कालिख़ में। मुझे मिलते रहे मेरे जैसे लुटे-पिटे लोग, 'जो सुन्दर सुबह हो सकती है इस सम्भावना से आज़ाद हो चुके थे।' हम साथ बैठ कर बात करते, साथ काम करते, साथ खाते-पीते पर उस सुन्दर सुबह का ज़िक्र करने से बचते। असल में हम सुंदरता से घबराने वाले लोग थे। हम वो लोग थे कि जब जीवन में प्रेम ख़ुद चल कर आता है तो भी हम संशय करते कि 'ऐसा हमारे साथ कैसे?'
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